मंगलवार, 29 अगस्त 2023

छुट्टी रद्द होने से बिहार के शिक्षको में गुस्सा | विरोध के सुर तेज होने के आसार,,। अब शिक्षक चुप नहीं बैठेंगे

Patna : बिहार सरकार के माध्यमिक शिक्षा निदेशालय द्वारा एक पत्र जारी किया गया है जिसमे विभिन्न पर्व त्योहार की छुट्टियों को रद्द कर दिया गया है और दुर्गा पूजा दीवाली और छठ की छुटियों में कटौती कर दिया गया है जिससे शिक्षक समाज मे रोष व्याप्त है।



 शिक्षक नेता सह बिहार पंचायत नगर प्राथमिक शिक्षक संघ (मूल) के प्रदेश महासचिव जयंत कुमार सिंह ने कहा कि अत्यंत दुख के साथ अब महसूस ही नहीं हो रहा बल्कि यह एक्सेप्ट करना होगा कि हम लोग आजाद देश के गुलाम शिक्षक हो चुके है।


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शिक्षा विभाग ने छुट्टियों का बजाया बैंड | 14 छुट्टी रद्द करने से शिक्षक समाज मे आ*क्रोश


उन्होंने आगे कहा कि माननीय नीतीश कुमार जी को को शिक्षा में सुधार से मतलब नहीं है। जानबूझकर शिक्षकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। शिक्षको और स्कूली बच्चों को साल में 60 दिन का अवकाश बिहार शिक्षा संहिता सेवा के आधार पर कानून के तहत मिलताआ रहा है। गौर करने की बात है आज जो बिहार सरकार के द्वारा संशोधित अवकाश पत्र निकाला गया है उसमें इस बात की चर्चा भी है कि शिक्षा अधिकार कानून के तहत साल में 200 से 220 दिन प्रारंभिक स्कूलों में अध्ययन अध्यापन के लिए खोलना है। 


इस प्रकार साल में 365 दिनों में60 पर्व त्यौहार का छुट्टी और52 रविवार दोनों मिलकर 112 दिन छुट्टी होता है इस प्रकार365-112=253 दिन होता है 220 दिन के जगह 253 दिन हो जाता है तो फिर किस हिसाब से छुट्टी कटौती की गई है समझ से परे है? उन्होंने कहा- "सीधा-सीधा शिक्षकों को मानसिक रूप से परेशान करने की गहरी साजिश है!"




उन्होंने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि इस घटना से मैं काफी मर्माहत हूं और संगठन का नाम लिखने एवं अपने आप को नेता कहने का हिम्मत हमारे अंदर नहीं हो पा रहा है अपने आप को पंगु महसूस कर रहा हूं शायद इस घटना के बाद भी सभी शिक्षकों और शिक्षक नेताओं का जमीर जाग जाए!


आज जारी किये गए नए अवकाश तालिका के अनुसार सभी जिले का लगभग 12 से 15 दिन की छुट्टी कटौती का आदेश निर्गत करना सरकारी स्कूल के शिक्षको के साथ साथ शिक्षा अधिकार कानून  के आलोक में शिक्षक शिक्षिकाओं के साथ साथ स्कूली बच्चों का भी शोषण है।


 उन्होंने आगे कहा- अफसरशाही की परकाष्ठा है। सरकार  से लड़ने के लिए सभी संगठन कमर कस लें या अपने आप को संगठन  का नेता कहना बन्द कर दें। जब हम सभी शिक्षकों के साथ हो रहे अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते तो हमें नेता कहाने और संगठन चलाने का अधिकार भी नहीं है।

            



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